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शुक्रवार, 10 जून 2022

निर्जला एकादशी - क्यों कहा जाता है इसे भीमसेनी एकादशी


निर्जला एकादशी के दिन बिना कुछ खाए पिए व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। लेकिन शास्त्रों में निर्जला एकादशी के व्रत को सबसे कठिन और फलदायी बताया गया है। इस व्रत मे जल का त्याग करना पड़ता है। मान्यता है कि मात्र इस एकादशी को कर लेने से सालभर की एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। निर्जला ग्यारस व्रत का संबंध द्वापर युग से है। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.।

आइए जानते हैं क्यों पड़ा ये नाम ?

पौराणिक कथा के अनुसार जब वेद व्यास जी ने पांडवों को एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो भीमसेन के मन में चिंता सताने लगी। उन्होंने वेद व्यास जी से पूछा कि आप तो प्रत्येक माह के हर पक्ष में एक व्रत रखने को कह रहे हैं, लेकिन मुझसे तो भूख सहन नहीं होती है, मैं तो एक पल भी बिना भोजन के नहीं रह सकता। फिर व्रत कैसे करूंगा? भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी बोले, जो व्यक्ति एकादशी तिथि पर व्रत नहीं करता और भोजन करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती। निराश होकर भीमसेन ने व्यास जी से कहा कि आप मुझे साल में सिर्फ एक व्रत बताइए, जिसे करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।

ऐसे पड़ा भीमसेनी एकादशी नाम

तब वेद व्यास जी ने कहा कि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत रखने से वर्षभर के समस्त एकादशी व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह निर्जला एकादशी व्रत है। निर्जला एकादशी व्रत करने से तुम्हें यश, पुण्य और सुख प्राप्त होगा और मृत्यु के बाद भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष भी प्राप्त होगा। तब भीमसेन ने निर्जला एकादशी व्रत रखा।  इस वजह से निर्जला एकादशी व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

शनिवार, 21 अगस्त 2021

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाते हैं। इसलिए इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है। इस दिन बहनें भाइयों की समृद्धि के लिए उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियाँ बांधती हैं, वहीं भाई बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं। कुछ क्षेत्रों में इस पर्व को राखी भी कहते हैं। यह सबसे बड़े हिन्दू त्योहारों में से एक है।

रक्षाबंधन मुहूर्त

इस वर्ष यानी 22.08.2021 

राखी बांधने का मुहूर्त - 06:14:56 से 17:33:39 तक

अवधि - 11 घंटे 18 मिनट

रक्षाबंधन अपराह्न मुहूर्त - 13:41:54 से 16:17:59 तक

रक्षा बंधन का पर्व श्रावण मास में उस दिन मनाया जाता है जिस दिन पूर्णिमा अपराह्ण काल में पड़ रही हो। हालाँकि आगे दिए इन नियमों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है–

यदि पूर्णिमा के दौरान अपराह्ण काल में भद्रा हो तो रक्षाबन्धन नहीं मनाना चाहिए। ऐसे में यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो पर्व के सारे विधि-विधान अगले दिन के अपराह्ण काल में करने चाहिए।

लेकिन यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में न हो तो रक्षा बंधन को पहले ही दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मना सकते हैं।

यद्यपि पंजाब आदि कुछ क्षेत्रों में अपराह्ण काल को अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है, इसलिए वहाँ आम तौर पर मध्याह्न काल से पहले राखी का त्यौहार मनाने का चलन है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार भद्रा होने पर रक्षाबंधन मनाने का पूरी तरह निषेध है, चाहे कोई भी स्थिति क्यों न हो।

ग्रहण सूतक या संक्रान्ति होने पर यह पर्व बिना किसी निषेध के मनाया जाता है।

राखी बांधने की विधि

व्रत रखें - रक्षाबंधन के दिन जब तक भाई की कलाई पर राखी न बांध लें, तब तक आप व्रत रखें। कहा जाता है कि पारंपरिक विधि यही है।

पूजा की थाली की विशेष विधि - राखी बांधने से पहले आप पूजा की थाली को सही तरह से सजाएं। पूजा की हर सामग्री का रखें ख्याल। थाली में दही, अक्षत, फूल, दीपक, रोली, मिठाई और राखी अवश्य रखें।

सर्वप्रथम दही से करें तिलक - दही को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। पूजा-पाठ इसके बिना असंभव है। भाई को राखी बांधने से पहले उसके माथे पर दही का तिलक लगाएं।

फिर रोली से करें तिलक - दही से भाई का तिलक करने के बाद आप उसके माथे पर रोली का टिका लगाएं।

अक्षत और फूल - रोली के तिलक के बाद भाई पर अक्षत और फूल चढाएं। आंखें बंद करके इसी समय अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करें।

राखी बांधकर आरती करें - अब अपने भाई के दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधकर उसकी आरती उतारें और उसे मिठाई खिलाएं।

राखी बांधने की सही जगह - राखी बांधते समय इस बात का ध्यान दें कि बेड या सोफे पर बैठकर राखी बिल्कुल न बांधें। बेहतर होगा कि लकड़ी के पीढ़े (छोटा पाटला) पर बैठकर और भाई को बिठाकर ही राखी बांधें। भाई का मुख पूर्व दिशा की ओर रखें। राखी बांधते समय आपका मुंह पश्चिम दिशा की तरफ हो।

राखी बांधते समय पढ़ें यह मंत्र - अगर राखी बांधते समय बहनें रक्षा सूत्र पढ़ती हैं तो यह बेहद ही शुभ होता है। इस रक्षा सूत्र का वर्णन महाभारत में भी आता है।

ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामपि प्रति बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा

यह पौराणिक कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। अपनी राजधानी इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में शिशुपाल भी उपस्थित हुआ। यज्ञ के दौरान शिशुपाल ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान किया और श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया।

शिशुपाल का वध कर लौटते समय सुदर्शन चक्र से श्रीकृष्ण की उंगली थोड़ी कट गई और उससे रक्त बह निकला। तब द्रौपदी ने अपने साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली पर बांधी। उस समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह इस वस्त्र के एक-एक धागे का ऋण चुकायेंगे।

द्युतक्रीड़ा के समय जब कौरवों ने द्रौपदी के चीरहरण का प्रयास किया, तब श्रीकृष्ण ने अपना वचन निभाते हुए चीर बढ़ाकर द्रौपदी की लाज की रक्षा की। जिस दिन द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली में अपना पल्लू बांधा था, वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था और वह दिन रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है।