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शनिवार, 24 सितंबर 2022

राम सेतु के निर्माता – नल और नील

हम हिंदू हैं तो हमने अवश्य ही महर्षि वाल्मिकी कृत रामायण अथवा तुलसी कृत रामचरितमानस का पाठ सुना होगा अथवा किया होगा। इन ग्रंथों में घटी घटनाओं को हम केवल धार्मिक महत्ता ही देते हैं, शायद ही हम उन घटनाओं के कारण, परिणाम और प्रभावों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखते हैं। इनमें घटी एक घटना जो कोई सामान्य घटना नहीं थी। वह घटना थी भारत के दक्षिण छोर से लंका के मध्य सेतु निर्माण की। तत्कालीन समय में इस सेतु का निर्माण एक अकल्पनीय बात थी। आज भी वैज्ञानिक इस सेतु पर गहन शोध कर रहे हैं। उनका मानना हैं कि इस राम सेतु की इंजीनियरिंग देखकर लगता हैं कि हजारों वर्ष पूर्व भी भारत के इंजीनियर कितने दक्ष, समृद्ध और योग्य थे। 

क्या हम जानते हैं कि इस सेतु का निर्माण विश्वकर्मा पुत्र नल और नील के कुशल निर्देशन में किया गया था?

रामायण से हम सभी परिचित हैं पर हम विश्वकर्मा पुत्र नल और नील के बारे में शायद ही जानते होंगे। आज की पीढ़ी तो इस तथ्य से अपरिचित ही होगी। यह लेख हमें अपने पूर्वजों के बारे में परिचितकराने के उद्देश्य से है कि हम किस कुल से संबंधित हैं और हमारा इतिहास कितना गौरवशाली है। हमें अपने विश्वकर्मा पुत्र होने पर कितना गर्व है।

नल और नील भगवान विश्वकर्मा के पुत्र थे, जो वानर प्रजाति से संबंधित थे। नल और नील सुग्रीव सेना के सेनानायक थे। इनके अधीन 1 लाख वानर सेना थी। विश्वकर्मा पुत्र होने के कारण वे जन्मजात इंजीनियर कहे जाते हैं। ये कुशल आर्किटेक्ट थे। किंवदंती है कि नल और नील बचपन में बहुत ही शरारती और चंचल थे, वे अक्सर अपनी चंचल आदत के कारण ऋषियों की वस्तुएं उठाकर नदी मे फेंक देते थे। इसलिए एक दिन क्रोधित होकर ऋषियों ने नल और नील को श्राप दे दिया कि “तुम्हारे द्वारा फेंकी गई वस्तुएं जल में कभी नहीं डूबेंगी”। 

प्रभु श्रीराम ने जब माता सीता को वापस लाने के लिए लंका पर चढ़ाई की योजना बनाई तो प्रभु श्रीराम का सहयोग कर रही सुग्रीव सेना के सेनानायक के रूप में नल नील भी उस सेना में शामिल थे। समस्या थी कि लंका तक पहुंचने के लिए बीच में विशाल समुद्र था, इसे कैसे पार किया जाए। श्रीराम की सेना लंका जाने को आतुर थी पर बीच में समुद्र आ जाने से सब असमंजस की स्थिति में पड़ गए थे। श्रीराम ने कई दिन तक समुद्र देव से रास्ता देने की विनती की, परन्तु समुद्र देव द्वारा विनती न सुने जाने के बाद श्रीराम ने क्रोधित होकर जैसे समुद्र सुखाने का बाण-अनुसंधान किया तब समुद्र देव ने प्रकट होकर श्रीराम से सेतु बनाने का निवेदन किया। उन्होंने बताया कि आपकी सेना में विश्वकर्मा पुत्र नल और नील जैसे कुशल इंजीनियर मौजूद हैं जो समुद्र में सेतु बनाने में दक्ष हैं। 

श्रीराम का आदेश पाते ही नल और नील सेतु के निर्माण कार्य में जुट गए। सेतु निर्माण के लिए सबसे पहले नल और नील ने रामेश्वरम में उस स्थान की खोज की, जहां से लंका शीघ्र पहुँचा जा सके। स्थान की खोज के उपरांत श्रीराम द्वारा उस स्थान को धनुष से चिह्नित किया गया, जिसे आज हम धनुषकोटी कहते हैं। नल-नील के निर्देशन में सभी वानर सेतु के निर्माण मे लग गए। सेतु की सरंचना का निर्णय भी नल और नील द्वारा लिया गया। श्रीवाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड के 22 वें अध्याय में लिखा है कि विश्वकर्मा के पुत्र वानर श्रेष्ठ नल के नेतृत्व में वानरों ने मात्र पांच दिन में सौ योजन लंबा तथा दस योजन चौडा सेतु समुद्र के ऊपर बनाकर रामजी की सेना के लंका में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। यह अपने आप में एक विश्व-कीर्तिमान है। आज के इस आधुनिक युग में नवीनतम तकनीक के द्वारा भी इतने कम समय में यह कारनामा कर दिखाना संभव नहीं लगता। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान् शिल्पकार नल के निर्देशानुसार वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल, बकुल, आम, अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर, चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा।

कम्बा रामायण में सेतु के वास्तुकार और निर्माता के रूप में नल को पूरी तरह से श्रेय दिया गया है। रामचरितमानस में सेतु निर्माण के लिए नल और उनके भाई नील को श्रेय दिया है। प्रभु श्रीराम ने इस सेतु का नाम “नल सेतु” रखा था पर वर्तमान में सब इसे “राम सेतु” के नाम से पुकारते हैं।

रामायण के तेलुगु और बंगाली रूपांतरों में भी इसका उल्लेख है कि हनुमान पत्थर लाकर नल को देते हैं, जिसे बाएं हाथ से लेकर दाएं हाथ से समुद्र में रखते हैं। हनुमान इस बात से अपमानित महसूस करते हैं कि नल उनके द्वारा लाए गए पत्थरों को "अशुद्ध" बाएं हाथ से लेते हैं और उन्हें समुद्र में रखने के लिए "शुद्ध" दाहिने हाथ का उपयोग करते हैं। हनुमान को राम द्वारा शांत किया जाता है और उन्हें समझाया जाता है कि कारीगरों की परंपरा बाएं हाथ से लेने और वस्तु को दाईं ओर रखने की है।

रामायण में उल्लेख है कि सेतु निर्माण के समय पत्थर नहीं डूबे थे और आज भी रामेश्वरम के आसपास ऐसे पत्थर हैं जो पानी पर तैरते हैं।

कम्बा रामायण में नल को लंका में श्रीराम की सेना के लिए रहने के लिए क्वार्टर बनाने के प्रभारी के रूप में भी चित्रित किया गया है। वह सेना के लिये सोने और रत्नों के तम्बुओं का एक नगर बनाते हैं, लेकिन अपने लिए बांस, लकड़ी और घास-फूस से एक साधारण सा घर बनाते है।

आनंद रामायण में उल्लिखित है कि सेतु निर्माण से पूर्व भगवान श्रीराम ने नल द्वारा नवग्रह देवताओं के रूप में स्थापित नौ पत्थरों की पूजा की थी।

हमें गर्व है कि हम उस वंश परम्परा से संबंधित हैं जो निर्माता है। 

श्याम बाबू शर्मा
मंत्री
श्री विश्वकर्मा पंचायत मंदिर समिति
जटाशंकर, गोरखपुर