निर्जला एकादशी के दिन बिना कुछ खाए पिए व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। लेकिन शास्त्रों में निर्जला एकादशी के व्रत को सबसे कठिन और फलदायी बताया गया है। इस व्रत मे जल का त्याग करना पड़ता है। मान्यता है कि मात्र इस एकादशी को कर लेने से सालभर की एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है। निर्जला ग्यारस व्रत का संबंध द्वापर युग से है। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है.।
आइए जानते हैं क्यों पड़ा ये नाम ?
पौराणिक कथा के अनुसार जब वेद व्यास जी ने पांडवों को एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो भीमसेन के मन में चिंता सताने लगी। उन्होंने वेद व्यास जी से पूछा कि आप तो प्रत्येक माह के हर पक्ष में एक व्रत रखने को कह रहे हैं, लेकिन मुझसे तो भूख सहन नहीं होती है, मैं तो एक पल भी बिना भोजन के नहीं रह सकता। फिर व्रत कैसे करूंगा? भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी बोले, जो व्यक्ति एकादशी तिथि पर व्रत नहीं करता और भोजन करता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती। निराश होकर भीमसेन ने व्यास जी से कहा कि आप मुझे साल में सिर्फ एक व्रत बताइए, जिसे करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।
ऐसे पड़ा भीमसेनी एकादशी नाम
तब वेद व्यास जी ने कहा कि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत रखने से वर्षभर के समस्त एकादशी व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है। यह निर्जला एकादशी व्रत है। निर्जला एकादशी व्रत करने से तुम्हें यश, पुण्य और सुख प्राप्त होगा और मृत्यु के बाद भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष भी प्राप्त होगा। तब भीमसेन ने निर्जला एकादशी व्रत रखा। इस वजह से निर्जला एकादशी व्रत को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
